Wednesday, June 15, 2011

Love U...Mr. Kalakaar

I was associated with Rajshri Production's latest release Love U Mr. Kalakaar as an Art Consultant/ Cartoon Artist. Tusshar Kapoor plays a cartoonist in the movie, and I provided all the cartoons that were there in the movie.

I was asked by Mr.Triambak Sharma, Editor Cartoon Watch to do a small write up on my experience about the movie sometime back. The write up appeared in the latest issue of the magazine.

Here it goes:

त्र्यम्बक भैय्या ने जब मुझे जब अपने लव यू मि. कलाकार को ले कर हुए अनुभव के बारे में लिखने को कहा तो मुझे सोचते हुए कुंग फु पांडा के कछुआ मास्टर उगवे की वो लाइन याद आई जिसमें वो कहते हैं One Often Meets His Destiny On The Road He Takes To Avoid It ! कई बार आपका प्रारब्ध आपको उस राह में मिलता है जो आपने उससे बचने के लिए ली होती है. हालांकि मुझे कार्टूनिंग से हमेशा एक लगाव रहा है और मैंने अपने कार्टूनिंग जीवन की शुरुआत कार्टून वाच के साथ १९९७ में की थी पर एक समय के बाद मैं प्रोफेशनल कार्टूनिंग से ऊब चुका था, और वैसे भी मुझे पोलिटिकल या सोशल कार्टूनिंग से ज्यादा लगाव कॉमिक कार्टूनिंग से रहा है. एक लम्बे अरसे तक गोथम कॉमिक्स, बंगलोर में काम करते करते अचानक एक दिन मन कार्टूनिंग से ऐसा उचटा कि मैंने अपने ब्रुश और इंक को एक बक्से में पैक किया और निकल पड़ा कुछ अलग करने...मैंने कार्टूनिंग छोड़ दी थी पर कार्टूनिंग ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. रेडियो करते समय मैं यदा कदा अपने स्टेशन के Ads लिए कुछ कार्टून्स बना दिया करता था, कभी किसी दोस्त की Ad Agencies के लिए कार्टून्स बनाता था तो कभी अपने खुद के जॉब एप्लीकेशन को कार्टूनी रंग में रंग देता था...प्रोफेशनल कार्टूनिंग से दूर रह कर भी कार्टूनिंग बदस्तूर जारी थी हाँ मैंने खुद को कार्टूनिस्ट कहना बंद कर दिया था. ऐसे में मुंबई आने पर जब मेरी मुलाकात मनस्वी भाई से हुई तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था एक दिन वो मुझे वापस घसीट कर ड्राईंग बोर्ड तक ले आयेंगे.
मैंने उनको अपने कुछ पुराने कार्टून्स दिखाए जो कि उनको बड़े पसंद आये बाद में जैसा कि महानगरों में होता है वो अपने काम में रम गए और मैं अपने काम में. कार्टूनिंग अब तकरीबन बिलकुल बंद थी पर हाँ डिस्नी टीवी के लिए काम करते हुए फिर ऐसा कुछ काम आया जिसके लिए ज़रूरत हुई किसी कार्टून डिज़ाईनर की और मैंने एक बार फिर दो चार कार्टून बनाये और डिस्नी छोड़ कर निकल गया पुणे बिग एनीमेशन...जहां मेरे चारों और इतने ज़बरदस्त कार्टूनिस्ट थे कि मुझे कभी कुछ भी draw करने ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई, फिर भी मैं शौकिया तौर पर एक रोज़ एक Wacom Tablet खरीद लाया कि चलो कभी ज़िन्दगी में वक़्त मिला तो एक बार फिर कार्टून बनायेंगे. मगर न वक़्त मिला न कार्टून बने बेचारी टेबलेट टेबल पर रखी धूल खाती रही और मैंने तो तब तक शर्मसार हो कर खुद को कार्टूनिस्ट कहना भी बंद कर डाला था. अब हम एनीमेशन राईटर और assistant preproduction director थे...ऐसे में एक रोज़ मन को कुछ ऐसी खुरापात चढ़ी कि हमने अपनी जॉब से इस्तीफ़ा दे दिया ये सोच कर कि कुछ अलग करना है अब. इस बीच मनस्वी भाई से एक दो बार फोन पर बात हुई थी और उन्होंने कहा था कि अगली बार मुंबई आये तो मिलना मुझसे एक बार...अब तो वैसे भी हम थे बेरोजगार तो मनस्वी भाई से मिलने के प्लान के साथ साथ वापस ज़रा कार्टूनिंग करने का भी प्लान बनाया और बस मस्ती में आ के हमने अपनी नयी tablet पर कुछ स्केच कर डाले और उन्हें पोस्ट कर दिया फेसबुक पर, अब इसे संयोग कहिये या विधि का विधान उसी रोज़ पहले उस कार्टून पर मनस्वी भाई ने एक कमेन्ट किया और फिर उनका फ़ोन आ गया और उन्होंने मुझे मिलने बुलाया राजश्री के ऑफिस. राजश्री फिल्म्स?? मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ कि आखिर ये हो क्या रहा है. बस आनन फानन में मनस्वी भाई से मुलाकात की तो पता चला कि वो राजश्री के लिए एक फिल्म डायरेक्ट करनेवाले हैं जिसमें उनका हीरो एक कार्टूनिस्ट है, एक सीधी सच्ची कहानी थी उनकी और बस वो सुनते ही मैं एक बार फिर वापस लौट आया था कार्टूनिंग की ओर.
मेरी एक मुलाक़ात कराई गयी राजकुमार बडजात्या जी से जो फिल्म के निर्माता और राजश्री के सर्वेसर्वा हैं. राज जी से हुई मुलाक़ात मैं भूल नहीं सकता उन्होंने कुछ ही मिनटों में मेरी पूरी जानकारी ले ली ये ही नहीं उन्होंने मुझसे उन सारे शहरों के छविग्रहों का भी विस्तृत हाल ले लिया जिन शहरों में मेरा आना जाना रहा है...उनको ना सिर्फ हर छोटे बड़े शहर की हर टॉकीज़ का नाम याद था बल्कि उन्हें वहाँ चल रही फिल्मों तक की जानकारी थी...ऐसे sharp लोग आपको कभी कभी ही मिलते हैं और मेरे लिए ये मुलाक़ात अविस्मर्णीय इसलिए भी रहेगी कि उड़ीसा के जिस छोटे से गाँव में मेरा जन्म हुआ है, जिसकी जानकारी मुझे लोगों को बहुत सारा भूगोल समझा कर देनी पड़ती है राज जी ने उसका नाम सुनते ही आस पास के कई और छोटे गाँव के नाम मुझे गिना दिए साथ ही मुझे ये हिदायत भी मिली कि हालांकि उनका हीरो कार्टूनिस्ट है पर वो एक सीधा सच्चा इंसान है इसलिए उसके कार्टून्स किसी कि हंसी उड़ाने के लिए नहीं होंगे ना ही वो किसी के नैन - नक्श बिगाड़ेगा, आपके सारे कार्टून्स प्यारे और सबको गुदगुदानेवाले हो व्यंग्यात्मक या कटाक्षवाले बिलकुल ना हो. उन्होंने बासु chatterjee का उदाहरण देते हुए मुझे बताया कि बासु द खुद एक कार्टूनिस्ट थे और उन्होंने राजश्री के लिए काफी फिल्में बनाई हैं और उनकी सारी फिल्मों का बेस होता था सीधा सरल हास्य और मेरे कार्टून्स में वो नज़र आना चाहिए.
उनसे मिल कर मैं जैसे ही बाहर निकला मनस्वी भाई ने मेरी मुलाक़ात सूरज बडजात्या जी से करवाई और जैसे ही सूरज जी अपने ऑफिस में घुसे... मनस्वी भाई ने मेरी टांग खींचते हुए कहा राजश्री में कोई तेरी तरह हाफ चड्डी में नहीं आता...मैंने हाफ पेंट पहनी हुई थी...और इसके बाद मैं जितनी बार राजश्री पहुंचा शायद मैं हर बार हाफपेंट ही पहने हुए था...क्योंकि जब एक बार गलती से मैं जींस पहने हुए ऑफिस पहुँच गया तो कुछ लोगों ने मुझे रोक कर पूछ लिया कि आज क्या कुछ ख़ास बात है? आप पूरे कपड़ों में हैं.

अब तक मनस्वी भाई की ब्रीफ के हिसाब से मैंने कार्टून बनाने शुरू कर दिए थे, और अखबारों के लिए कार्टून बनाने और फिल्म के लिए कार्टून बनाने में जो फर्क होते हैं वो मैं समझने लगा था - जो स्ट्रोक्स चित्र के छोटे होने पर उसकी खूबसूरती बढ़ा सकते हैं वो फिल्म के सेट में दीवारों पर अगर सही ना लगे तो पूरा लुक गड़बड़ हो सकता है.
मनस्वी भाई ने फिल्म के कार्टूनिस्ट हीरो साहिल के घर कि एक कल्पना की थी कि वहाँ हर दीवार पर कार्टून होंगे - मुझे सेट का नक्षा दे दिया गया और दीवारों के डाईमेंशन को ध्यान में रख कर मैंने कार्टून बनाने शुरू कर दिए और ये कार्टून करते करते मुझे ध्यान में आया वो कार्टून जो मैंने भिलाई में रहते हुए अपने दोस्त बंटी की लाईब्ररी में बनाया था - उसकी लाईब्रेरी के एक प्लग पॉइंट में कर्रेंट आ जाया करता था लोगो को उससे दूर रखने के लिए मैंने उस प्लग पॉइंट के सामने एक बिजली का झटका खाते इंसान का कार्टून बनाया था बस वोही कार्टून मैंने साहिल के घर के लिए भी बना दिया - ये कार्टून सूरज जी को भी बड़ा पसंद आया और ये कार्टून फिल्म में भी कई बार नज़र आता है.

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब हम सेट पर पहुंचे - अब सेट नक़्शे से काफी अलग हो चुका था और सेट के लिए बनाये मेरे कुछ कार्टून यहाँ इस्तेमाल नहीं हो सकते थे...शूट बड़ी जल्दी शुरू होनी थी और वक़्त था बहुत कम...ऐसे में जब सेट के एक हिस्से में एक बड़ी अलमारी रखी गयी और उसके ऊपर के खाली हिस्से के लिए मुझे कार्टून बनाने को कहा गया तो एक मिनट के लिए मैं सोच में पड़ गया की उतने ऊपर क्या बनाया जाए और अचानक ख्याल आया कि इतने ऊपर तो एक ही इंसान बैठ सकता है - साम्भा! बस मैंने तुरंत स्व. मैक मोहन का एक केरीकेचर किया और उसे वहाँ बिठा दिया.
सबको ये आईडिया मजेदार लगा. जब बात आई सेट पर ये कार्टून्स पैंट करवाने की तो ये मेरे लिए ज़रा दुविधा भरा काम था, ड्राईंग बोर्ड पर कार्टून बनाना एक बात है और दीवारों पर उसे पैंट करना अलग. खैर आर्ट डायरेक्टर ने मुझे दो पेंटर्स दिलाये जो मेरे कार्टून्स उन दीवारों पर पेंट करेंगे, मैंने राहत की सांस कुछ जल्दी ले ली थी क्योंकि इन पैन्टेर्स को कार्टून समझाने के अलावा ये भी समझाना पड़ता था की कुछ लाईनों को उन्हें सिर्फ कॉपी ही नहीं करना ये भी समझना है कि वो वहाँ हैं किसलिए खैर ये पूरा काम निपटने के बाद अगले बाकी कार्टून्स मुझे घर पर ही बनाने थे. और एक एक करके साहिल की पोर्टफोलियो स्केचबुक (जिसमें काफी कार्टून्स मेरे अपने पोर्टफोलियो के थे), उसका विजिटिंग कार्ड, ऑफिस कार्टून्स, फैक्ट्री में इस्तेमाल होने वाले सेफ्टी कार्टून्स, साहिल की कॉमिक स्ट्रिप वगैरह सैकड़ों कार्टून्स मैंने बनाये - मैं एक बार फिर पूर्णकालिक कार्टूनिस्ट बन गया था...साथ ही फिल्म के स्पेशल एफ्फेक्ट्स के लिए भी मैंने थोड़ी storyboarding की जो अपने आप में काफी मजेदार सा अनुभव था. इन कार्टून्स को करते वक़्त ये ध्यान देना भी ज़रूरी था की इनमें से कई कार्टून फिल्म में एक सेकंड से भी कम समय के लिए नज़र आनेवाले थे, इसलिए उनको बिलकुल सिम्पल रखना ज़रूरी था मगर चेलेंज ये था की सिम्पल होने के बाद भी उनमें कुछ ऐसा हो जो लोगों को याद रह जाए...साथ ही हर कार्टून में साहिल का सीधा सादा केरेक्टर नज़र आये... सबसे ज्यादा मुश्किल था अमृता राव के स्केच बनाना क्योंकि ज़रा सी भी गड़बड़ से उनका चेहरा बिगड़ सकता था पर किसी तरह कई ऑप्शन स्केच करने के बाद हमने उनमें से कुछ एक को चुना...और जो ऑप्शन हमने चुने थे मुझे उनके कुछ वर्क इन प्रोग्रेस ऑप्शन बनाने थे ताकि हम साहिल को वो चित्र स्टेप बाई स्टेप बनाते हुए दिखा सकें...ऐसे ही फिल्म के पोस्टर और मार्केटिंग के लिए भी मैंने कई पॉकेट कार्टून और कार्टून स्ट्रिप्स बनाई पर अब मैंने अपने कार्टून्स में ज़रा सी डिटेल डालने के लिए मुक्त था क्योंकि ये कार्टून प्रिंट में इस्तेमाल होनेवाले थे.

खैर फिल्म पूरी होते ही मनस्वी भाई ने मुझे उसके प्रीव्यू के लिए इनवाईट भेजा और मैं पापा जी को ले कर फिल्म देखने पहुंचा. उनको फिल्म इतनी ज्यादा पसंद आई कि वो अब तक इसे दो - तीन बार देख चुके हैं और मज़े की बात ये है कि अब तक उन्होंने मेरे कार्टूनों के बारे में कुछ भी नहीं कहा है हालांकि फिल्म के डाईलोगस के बारे में वो एक लम्बा ब्लॉग लिख चुके हैं...फिल्म के एंड क्रेडिट में मेरा नाम देख कर उनके चेहरे पर जो ख़ुशी की लहर आई मेरे लिए पापा जी की वो ख़ुशी ही इस फिल्म के लिए मेरा सच्चा पारिश्रमिक है - और इस पारिश्रमिक पर कोई टैक्स डिडक्शन नहीं होनेवाला... इसके बाद दूसरी बार ख़ुशी हुई स्क्रीन Magazine में लव यु मी.कलाकार की समीक्षा पढ़ते वक़्त जिसकी आखिरी लाइन में लिखा था - Cartoons shown in the film are excellent.

ना चाहते हुए भी राह में मेरी मुलाक़ात उससे हो ही गयी जिसे मैं इतने समय से टालता आया था - कार्टूनिंग! और इस कहानी का अंत भी मैं मास्टर उगवे के कथन से ही करना चाहूँगा - There are no accidents! न मेरा कार्टूनिंग छोड़ना कोई एक्सीडेंट था न वापस आना, कुछ चीज़ें बस आपको करनी पड़ती है और शायद मेरे लिए वो 'कुछ चीज़' है...कार्टूनिंग.

Some cartoons from Love U...Mr.Kalakaar
























Join CHITRAKATHA on Facebook

Blog Widget by LinkWithin